गंतव्य | डॉ.आरती भारद्वाज

धार है कृपाण की

चलकर है तुमको जाना

अश्रु एक बहाए बिना

गंतव्य है तुमको पाना

रुकना नही थकना नही

तू पथिक राह अंजान का

लाज रख तू तेज की

और मां के अभिमान का

जब सांस तेरी तेज हो

आंख में जुनून हो

राह में हो अटकलें

और हृदय में सुकून हो

धरा है साथ चल रही

साथ चल रहा गगन

हौसला बुलंद रख चल

निर्भय सिंह हो मगन