कुछ अलग | Rajesh Rawat

चलो कुछ अलग करते हैं आज,

तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।

मैं याद करूँ, मंदिर में अल्लाह को,

तुम मस्जिद में भगवान को ।

तुम घर ले आओ गीता - रामायण,

मैं ले आऊँ पाक कुरान को ।

तुम लगाओ ‘हरि ओम (ॐ)’ का जयकारा,

मैं ‘अल्लाहु अकबर’ की आवाज ।

चलो कुछ अलग करते हैं आज,

तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।

रेती, सिमेन्ट, ईंट और पत्थर,

हर मंदिर - मस्जिद में समान है ।

इबादत करने वाले भी तो,

दोनो ही, जगह पर इंसान है ।

फिर ऊपरवाले में, कैसा ये भेद ?

जब ‘सबका मालिक है केवल एक’ ।

पुकारो उसे किसी भी रूप में,

उसके तो हैं हजारों नाम ।

कोई उसे कहता है ‘रहीम’,

तो कोई उसे कहता है ‘राम’ ।

आखिर क्या फर्क पड़ता है इससे,

सिर किसके आगे झुकता है ?

जब मालूम है अच्छा फल तो,

अच्छे कर्मों से मिलता है ।

आपस में बढ़ाकर भाईचारा,

आओ बनाए, एक नया समाज ।

एक बार अपनाकर देखें,

सजदा करने का, यह नया अंदाज ।

चलो कुछ अलग करते हैं आज,

तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।