चलो कुछ अलग करते हैं आज,
तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।
मैं याद करूँ, मंदिर में अल्लाह को,
तुम मस्जिद में भगवान को ।
तुम घर ले आओ गीता - रामायण,
मैं ले आऊँ पाक कुरान को ।
तुम लगाओ ‘हरि ओम (ॐ)’ का जयकारा,
मैं ‘अल्लाहु अकबर’ की आवाज ।
चलो कुछ अलग करते हैं आज,
तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।
रेती, सिमेन्ट, ईंट और पत्थर,
हर मंदिर - मस्जिद में समान है ।
इबादत करने वाले भी तो,
दोनो ही, जगह पर इंसान है ।
फिर ऊपरवाले में, कैसा ये भेद ?
जब ‘सबका मालिक है केवल एक’ ।
पुकारो उसे किसी भी रूप में,
उसके तो हैं हजारों नाम ।
कोई उसे कहता है ‘रहीम’,
तो कोई उसे कहता है ‘राम’ ।
आखिर क्या फर्क पड़ता है इससे,
सिर किसके आगे झुकता है ?
जब मालूम है अच्छा फल तो,
अच्छे कर्मों से मिलता है ।
आपस में बढ़ाकर भाईचारा,
आओ बनाए, एक नया समाज ।
एक बार अपनाकर देखें,
सजदा करने का, यह नया अंदाज ।
चलो कुछ अलग करते हैं आज,
तुम पूजा करो और मैं पढूँ नमाज़ ।