सड़क | Anand Pandey 'Raj'

THE FOLLOWING POEM BY ANAND PANDEY ‘RAJ’ FROM MAHESANA, GUJARAT WON THE THIRD PRIZE IN WINGWORD POETRY COMPETITION’S REGIONAL CATEGORY.

कभी न थकने वाली ये सड़कें,

टूटतीं हैं, बिखरती हैं ,

कभी सुनसान जंगलो से,

कभी शोरगुल के माहौल से,

ठंड मे भी, शुष्क मे भी,

बारिशो के कहर मे भी,

रात दिन नही देखती,

गंतव्य पर ले जाती हैं,

दो स्थानों को ही नही,

दो दिलो को मिलाती हैं।

हम इंशान ही तो सड़क बनाते हैं,

उसमे स्थापित आदर्श भूल जाते हैं।

अपनी लकीर बनाते बनाते अक्शर,

दुसरो की लकीर नाबूद कर जाते हैं।

हम खुद को सड़क बना नही सकते,

गंतव्य तक किसी को पहुँचा नही सकते,

हमे हक नही किसी को भी रुलाने का,

उनके आंशुओं को अगर चुरा नही सकते।

ये सड़के हमपर कटाक्ष करती हैं ,

मै तो प्रतीक हूँ निष्काम की,

तुम अपने हृदय मे सड़क कब बनाओगे,

निर्भय हो चल सको अपनी राह पर,

वो मशाल कब जलाओगे।

About the poet

Anand Pandey-Raj, third prize winner of Wingword Poetry Prize 2023 in regional category, brings a compelling narrative of resilience and passion to the forefront in his journey. He graduated in Science from ECC Allahabad University and further attained his Post Graduate degree from MAISM Jaipur. He worked as an Assistant Professor at MCMSR Visnagar and is also a professional trainer by vocation. Even after three decades of life’s hustle since college, his love for the written words never faded and he reignited his literary flame at the age of 50, proving that one is never too old to pursue their passion. He accomplished a remarkable feat by authoring three profound books - "Talash," "Yaar Tere Sheher Main," and "Ehsas," demonstrating that age is merely a number when it comes to living one's true calling.

Ashraful Maqluqat | Aysha Bilquees

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

Pehli nazar me vo rishtedar nazar aata hai

Akele me kuch lamhe kya guzre k vo khoonkhar ho jata hai

Na rishton ki kadar, na badappan, na lihaaz naa us nanhi si jaan ki cheekh pukaar

usse to sirf uska jism hi baar baar nazar aata hai

Is dard se vo kuch aagee chali

kuch zakham daba, kuch umr badhi

kuch yaadein dhundhli si hui, maazi ko peeche chod vo aage chali

Kuch khud ko usne smjhaya hi tha

rishton ko fir apnaya hi tha

K ek roz vo chal rahi thi

tution s ghar nikal rahi thi..

roz se aaj uski muskaan kuch zyada hi khil rahi thi..

Usse kya khabar thi maazi fir se dohra jaega

fir se koi uske jism-o-rooh ko rond jaega

Jab matlab nikal gya to sadak pe chor dia usse..

bebas,besaara, khoon me lat pat, kadpe pathe, uljhe baal, ankhen laal

Guhaar laga rahi thi

kisiko madad ko bula rahi thi

Bison (20)  ke saamne hath jod kar apni hifazat chahrahi rahi thi

Kuch 15 ne usse palat kar dekha..

10 usse dekhkar chal die...

2-3 ne police ko call kia or apne ko ghar nikal lie

Or jo 2-3 bache the, jinke hifazat me vo thi padi

Unhone bhi usse tabaah karne me koi kasar na chodi

Police ko mili to bas ek laaho luhaan laash padi

Kise khabar us laash ne bhi sahi hogi darindagi

Hum ashraful maqluqat  hai janab

Hum laash ke sath bhi kahan hone dete hai insaaf

Abhi unki laash saamne hi padi thi

Maa uski besud diwar se adi thi

Ke aagye 4 log

Vo 4 log jinhe har masle par bolna hota hai

Har marhale par mu kholna hota hai

Aakr logon ne uske kapde, parwarish, kirdar sab par daagh dala..

Sayasatdaaron ne saalon tk  uske naam per khel khel kar na jaane kitni seat nikala..

Or!! Or uske mujrim??

Vo aaj bhi tapri pe ek haath me chai ek me sutta lie aazaad ghumte hai..

har ladki ko ussi nigaah se dekh kar

ussi anjaam tak le jaane ki raah dhundhte hai.

বোধিসত্ত্ব ও পায়েস তৈরির রেসিপি | Aranyak Chakrabarty

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

সারনাথে এক বিকেলে বোধিসত্ত্ব এক ভিক্ষুর তৈরি করা পরমান্ন খাচ্ছিলেন।

এ পরমান্ন সুজাতার দেওয়া সেই পরমান্নর চেয়ে বেশি না কম সুস্বাদু জানা নেই।

বোধিসত্ত্ব ততদিন নির্বাণ লাভ করেছেন।

অষ্টাঙ্গিক মার্গ তৈরি করা হয়ে গেছে।

কিন্তু অষ্টাঙ্গিক মার্গে অন্তর্নিহিত ভাবে খাদ্যের স্বাদ,ক্ষুধা সম্পর্কে কিছু বলা থাকলেও তা সাধারণ মানুষের পক্ষে বোঝা অত্যন্ত কঠিন।

পরমান্ন শেষ করে পাত্রটি রেখে বুদ্ধ সেদিন কি করেছিলেন?তার মত পুরুষ?

সেদিন না হোক জীবনের কোনোদিন যে তিনি পরমান্ন তৈরির আরও ভালো রেসিপি তৈরীর চেষ্টা করেছিলেন,তা জোর দিয়ে বলাই যায়।

जन्म | Naveen Jakhu

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

जब जन्म हुआ

गोद में हम उठाए गए

प्यार में आंखें नम हुई

खुशी के आँसू बहाए गए

कब तक माँ का आंचल रहता

धीरे धीरे बेदर्दी दुनिया में लाए गए

सच्चाई की छाप ले सीने पे चला

इतना गम इस दुनिया ने दिया

कभी रोते हुए, कभी सहमे हुए हम पाए गए

कोई हाथ पकड़ कभी लगता था पार

कभी सर पकड़कर डुबाए गए

कभी दुनिया के ताने बहादुरी से सहे

कभी लगा कि जिस्म से दूर साए गए

जब कभी भी सच बोलने की हिम्मत की

डरा दमका के नंगे पाव दौड़ाए गए

कभी सच बोलने की सजा पाई

कभी कभी सहलाए गए

हम नए थे इस दुनिया में

कभी हमारा इस्तेमाल हुआ

कभी भगवान द्वारा बचाए गए

धीरे धीरे सुन ना सीखा

धीरे धीरे कुछ बोल पाय

कभी कविताएं मन में बनी

फ़िर काग़ज़ पर शेयर लिखवाए गए

ಎನ್ನ ಒಮ್ಮೆ ತಾಯಾಗಿಸು | Shailesh Shivakumar

THE FOLLOWING POEM BY SHAILESH SHIVAKUMAR FROM BANGALORE WON THE SECOND PRIZE IN WINGWORD POETRY COMPETITION 2023.

ತಾಯೇ,

ಮೇಲೆರಡು ಕೋಣನ ಕೋಡು

ಕೈಯಲ್ಲಿ ಹುಲಿಯುಗುರು ಮೂಡುತ್ತದೆ

ದೇವರಂತೆ ಬರಿಪಾದದಿ ನಡೆವವರ

ನಕ್ಷತ್ರ ಇಣುಕುವ ಬಟ್ಟೆ ತೊಟ್ಟವರ ಕಂಡಾಗ

ಕೀವು ಮನದಿಂದ ಹೃದಯಕ್ಕೆ ಜಾರಿ

ನಂಜು ಹತ್ತಿಸಿಕೊಂಡ ಕೈಕೇಯಿಯಂತೆ ಕಾರುತ್ತದೆ

ಪೇಪರಿನ ಮಸಿ, ಉಗುಳು, ವಾಟ್ಸಾಪಿನ ಸಂದೇಶ, ಸುಳ್ಳು ಸುದ್ದಿ ಇತ್ಯಾದಿ

ನಿನ್ನ ಓಂಕಾರ ಅಳಿಸಿರೋ

ನನ್ನ ನಾಲಗೆಯ ಬರೆಯ ಮಾಯಿಸಿ

ನಿನ್ನ ಪ್ರೀತಿ ಅಮೃತದಿ ಮನದ ನಂಜ ಒರೆಸಿ

ಜೀವ ಮಿಡಿತವ ಹಿಡಿಯಲು

ಎನ್ನ ಒಮ್ಮೆ ತಾಯಾಗಿಸು

ಶತ ಶತಮಾನಗಳ ಆಚರಣೆಯ ಯಜ್ಞ ಕುಂಡದ

ಭೇತಾಳವ ಬೆನ್ನ ಮೇಲೆ ಹೊತ್ತು

ಸುಡುಗಾಡು ಬೆಂಕಿ ಆರದಂತೆ

ದ್ವೇಷದ ಊದುಗೊಳವೆಯ ಊದುತ್ತಾ

ಹಳಸು ಮೋರಿನೀರ ಧಮನಿಯಲ್ಲಿ ಹರಿಸಿದ್ದೇನೆ

ಲಕ್ಷ್ಮಣ ರೇಖೆ ದಾಟುವವರ

ಧರ್ಮ ಗ್ರಂಥವ ಪಾಲಿಸದ

ಹರಕೆಯ ಕುರಿಗೆ ಮುಳ್ಳ ಕಿರೀಟ ತೊಡಿಸಿ

ಎಲ್ಲರೊಪ್ಪಿರುವ ಶಿಲುಬೆಗೇರಿಸಲು

ನನ್ನ ಕಾಲ ಕುಷ್ಠ ಹಿಡಿದ ಕೈಯ್ಯ ಕತ್ತರಿಸಿ

ನಡು ಮುರಿವ ಬೆನ್ನ ಭಾರ ಇಳಿಸಿ

ಎನ್ನ ಒಮ್ಮೆ ತಾಯಾಗಿಸು

ತುಳಿಯುವುದಕ್ಕೇ ಹುಟ್ಟಿರುವ ವಾಮನ ಕಾಲು

ಎರಡೆರಡು ಮಾಸ್ಕಲ್ಲೂ ಜಾತಿ ವಿಷವ ಮೂಸುವ ಅಸ್ಪೃಶ್ಯ ಮೂಗು

ಸಹಜೀವಗಳ ಶಿಕಾರಿಗೆ ಹೊಂಚುವ ಶಕುನಿ ಮನಸ್ಸು

ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರ ಸಮವಸ್ತ್ರ ಹೊಲೆದಿರುವ ಹಿಟ್ಲರಿನ ಹೃದಯ

ಇಂತಿಪ್ಪ ಇಂದ್ರಿಯಗಳೆಲ್ಲಾ ಇಂಚುಪಟ್ಟಿ ಹಿಡಿದು ನಿಂತಿರುವಾಗ

ಕಂಡದ್ದೆಲ್ಲವ ಹೀರುವ ಈ ಕತ್ತಲ ಕಂಗಳ ಕಿತ್ತು

ಫುಟ್ಟುಪಾತಿನಲ್ಲಿ ಮಲ್ಲಿಗೆ ಪೋಣಿಸಲು ಸೂಜಿಬೆಳಕ ಕಂಗಳ ನೀಡು

ಒಂಟಿ ಸಲಗದ ದಂತ ತೋರುವ ಸ್ವಂತಿಗಳ ಅಳಿಸಿ

ಗ್ರೂಪ್ ಫೋಟೋದ ಸಹ ಪಂಕ್ತಿಯಲ್ಲಿರುವಂತೆ

ತಳ್ಳು ಗಾಡಿಗೊಂದು ಕೈ ಬೊಗಸೆಗೆ ಹಿಡಿ ಅನ್ನ

ನೀಡುವಂತೆ ಹರಸು

ಯಾವಾಗಲೂ ಏನನ್ನೂ ಮರೆತಿರುವ ಮನಕೆ

ಮರೆಯದೆ ಚಕ್ರವರ್ತಿಯ ಕೊನೆಯಾಸೆಯ ನೆನಪಿಸು

ಕಿಚ್ಚ ಕುದಿಎಣ್ಣೆ ಈಜುಕೊಳದಲಿ

ಮುಳುಗಿದರೂ ಬೇಯುವುದು

ತೇಲಿದರೂ ಸೀಯುವುದು

ತೋರುಬೆರಳುಗಳ ಸುಳಿಗೆ ಸಿಲುಕಿ

ನೆತ್ತಿಗೇರಿರುವ ನನ್ನ ನೆತ್ತರು

ಪ್ರಾಣದುಸಿರ ಪ್ರತಿ ಜೀವಕ್ಕೆ ಹಂಚಿ ಪೂರ್ಣವಾಗುವ ಅಮ್ಮಿ

ಎಲ್ಲೇ ಹೋದರೂ ಜೊತೆಗಿರುವ ಭೂಮಿ

ಎಲ್ಲ ಜೀವಕ್ಕೆ ಎದೆಗುಟುಕ ಜಿನುಗಿಸೋ ಗಂಗೆ

ನಾ ಕಾಣದ ಎಷ್ಟೆಲ್ಲ ಸುಂದರ ಮುಖಗಳು ತಾಯೆ ನಿನಗೆ?

ನೀನು ಅಪ್ಪಿದಾಗ

ನನ್ನ ಕಂಗಳು ಮುಚ್ಚಿದ್ದವು

ರಕ್ತ-ಮಾಂಸದ್ದಾಗಲಿ ಕಟ್ಟಿಗೆಯದ್ದಾಗಲಿ ಮಣ್ಣಿನದ್ದಾಗಲಿ

ಬೆನ್ನು ಯಾವುದಾದರೇನಂತೆ

ಮೇಣದಂತೆ ಕರಗಿದ್ದು ನಾನಲ್ಲವೇ?

ನದಿಯಂತೆ ಹರಿದದ್ದು ಜೀವವಲ್ಲವೇ?

ಕಲ್ಲಲ್ಲೂ ಕಣ್ಣೀರ ಕಾಣೋ

ಬೇಡರ ಕಣ್ಣಪ್ಪನ ದೃಷ್ಟಿ ದಯಪಾಲಿಸು

ಪಾಷಾಣದ ನನ್ನ ಎದೆಯ ಒತ್ತಿ

ಕರುಣೆಯುಸಿರ ಬಿತ್ತಿ

ನಿಜ ಮನುಷ್ಯನನ್ನಾಗಿ ಮರುಹುಟ್ಟಿಸು

ಗಿಣಿ ಕಚ್ಚಿರೋ ಹಣ್ಣಲ್ಲಿ

ಶಬರಿಯ ಪ್ರೇಮದೆಂಜಲನು ರುಚಿಸು

ಕಣ್ಣ ಬೆಳಕ ಸ್ಪರ್ಶದಲಿ

ಎದೆ ಬಡಿತವ ದಾಟಿಸು

ನಿನ್ನೆಲ್ಲ ಮಕ್ಕಳಲ್ಲಿ ನನ್ನನ್ನೇ ಕಾಣಲು

ಎನ್ನ ಒಮ್ಮೆ ತಾಯಾಗಿಸು.

About the poet

Dr Shailesh Shivakumar is a technologist by profession and poet by passion. He is currently working as a software architect in Bengaluru. He loves reading literature and is pursuing his second PhD in Kannada.

किराए का मकान | Anand Kumar Gupta

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

वो जो उसने कुछ बेहतरीन लम्हात गुजारे थे अपने मकान में..अब वो सारे लम्हात किसी पुरानी हिकायत की तरह वक्त के समंदर में कहीं खो से गए हैं जिसे वो दोबारा जी नहीं सकता बस वक्त के रास्ते में चलते हुए मुड़ कर और ठहर कर उस दौर को बस टाक सकता था...

काश के "वो" फिर उस वक्त के कंधे पर अपना बोझ रख कर सुकून से सो पाता...

क्या "वो" उन बागीचे के पौधों की शाख को उसी कुरबत से निहार पायेगा जिस बागीचे को उसके पिताजी ने पासबान बनकर बड़े ही शिद्दत से संवारा था ठीक उसी तरह जिस तरह पिताजी ने अपने बच्चों को संवारा था और क्या वो उसी बागीचे की मिटटी से फिर अलग-अलग आकार बना पायेगा जिस तरह वो अपने बचपन में बनाया करता था अपने प्यारे बहनों और भाइयों के साथ...वही बहन और भाई जिसके बिना वो ख्वाबों वाला सफर अधूरा ही रह जाता...

काश के "वो" फिर से उन दीवारों के दाररों को हिमायत दे पाता जो कि उन दाररों के बावजूद भी एकदम सीधी खड़ी रहती थी...दरसल वो दीवारे उसे यह समझा रही थी कि ज़िन्दगी के राह में दरारे आते रहेंगे और उसी दाररों को लेकर हमें आगे बढ़ते रहना है...

क्या "वो" फिर से दिन और रात का फर्क कर पायेगा जिस तरह वो बचपन में किया करता था...अब तो दिन कब अपना आग बुझा देता है और रात कब अपनी काली चादर चीन लेती है कुछ गुमान ही नहीं लगा पाता...

काश "वो" फिर से उस शमा को जलते हुए देख पाता जिस तरह माँ जलाया करती थी अपने अंधेरे मकान को रोशन करने के लिए...दरसल वो शमा उसे यह बताना चाह रही थी कि जिस तरह वो जलते जलते खो जाती है दूसरों के ज़िन्दगी को रोशन करते हुए...ठीक उसी तरह उसका भी वजूद वक्त के दश्त में कहीं खो जायेगा...

उस मकान में एक अयातकार कमरा भी था जिस कमरे में माँ के आते ही वो रसोईघर बन जाता था और वो अपने आप में पूरा मकान था जहाँ माँ बड़े ही शिद्दत से अपने पकवान के नुस्ख़े में थोड़ा प्यार, थोड़ा दुलार और बहुत सारी इनायत के साथ हम बच्चों के लिए सपने बनाती...

आज जब "वो" अनजान सहर में अपने सिफर वाले दफ्तर से वापस लौट ता है तो फलक में परिंदों को देख कर यह सोचता है कि परिंदे भी आफ्ताब के डूबने के बाद अपने घोंसले की और चले जाते हैं...और एक "वो" जो बस अपने किराए के मकान की और बढ़ते चला जा रहा है...

आज "वो" किराए के मकान में बैठ कर बस फलक को निहारता चला जा रहा है और यह सोच रहा है कि अगली दफा जब वो अपने मकान जायेगा तो सारे लम्हात को अपनी यादों की झोली में भर लेगा और वक्त की डोरी से बाँध कर फिर से अपने किराए की मकान की और रवाना हो चलेगा...

दर्शन | Mandar Naik

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

जसे जसे विरत जाते अंतर तुझ्या माझ्यातले,

तसतसे दूरवरून येणार्‍या त्या

थंड काळ्या पाषाणांच्या हाकांमधून

ऐकू येत जाते

तुझ्या मकर कुंडलांची आदीम कीणकीण

आणि संथ होत जातात मनात उठलेली

युगायुगांची वादळे.

पावलागणिक नीवत जातात निराशेचे डोंब,

जेव्हा वाहत येतात नाम जपांचे

वारे तुझ्या गाभार्‍यातून,

जसजसा दिसू लागतो कळसावरचा

फडफडणारा आश्वस्त झेंडा,

ग्वाही देत जाते मन

तुझ्या निळगर्द अविचल अस्तित्वाची.

मग पायरी पायरीने ओढत आणतोस तू

तुझ्याकडे माझ्यातल्या तुला

आणि मी मात्र नुसताच वहावत राहतो

मिटून झरणारे डोळे.

गाभाऱ्याशी पोहोचता पोहोचता,

एकच गोंधळ उडतो माझ्या स्वत्वाचा..

गहिवरून शोधू पहातो मी स्वतःला,

असमर्थपणे लपवू पाहतो अस्वच्छ चेहरा माझा,

आणि उकरून काढण्याचा प्रयत्न करतो

प्राक्तनाच्या गाठोड्यातून आणलेले ते सारे

आणि ते ही जे मागून घ्यायचे आहे

अगोचरपणे.

पण जेव्हा तो गर्भार क्षण येतो

तुला आपादमस्तक न्याहाळण्याचा,

हतबल होतात माझे सारे गात्रगात्र,

राहून जाते मागायचे सारेच,

नुसतेच जुळतात हात असीम श्रद्धेने

आणि विरून जातो मी ही

क्षणार्धात तुझ्यात.

क्षण संपतो, मी ही सरतो,

आणि कलेवर माझे सरकत रांगेतून

येऊन पडते देवळाबाहेर

पण मी मात्र आतच घुटमळत

राहतो तुझ्या काळ्याभोर

पावलांशी...

আমার কলম | Sibu Kumar Das

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

আমার একটি কলম আছে।

ও সাদা জীবন নিয়ে চলাফেরা করে

কথা বলে, নাচে, গান গায়

আবার কখনো চুপ !

কখনো ঘুমিয়ে পড়ে।

কখনো রেগে যায়

আমার ভয় হয়,

ও এমনি ই সত্য কথা বলে

তবে রেগে গেলে

অপ্রিয় যত সত্য উচ্চারিত হয়।

এখন সত্যের অনেক শত্রু

এবং তাহাদের আজব সব শস্ত্র

অবান্তর, অহেতুক প্রশ্ন করে ঘরে ও বাহিরে:

“কেন সত্য বল ?”

সত্যের এক অদ্ভুত ব্যাখ্যা করে তা’রা:

“চিরন্তন সত্য বলে কিছু নাই,

তাহাই সত্য যাহা আপেক্ষিক, প্রয়োজনে সত্য”।

অদ্ভুত ভাবে আজকাল কলম গ্রেফতার হয়,

কলম-এরও কারাবাস হয়

অকারণ হয়, অজুহাতে হয়।

আমার কলমটা আছে এখন আমার সাথে, মুক্ত

দেখি, আর কতকাল থাকতে পারে ?

वो लड़की | Tanmay Neogi

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

एक लड़की है मेरे आफिस में,

मुस्कुराती ज़रा कम है।

शायद कहीं दूर से आई है,

या फिर शायद किसी बात का गम है।

उसके अनगिनत सपने है जैसे उसके बाल,

शायद जाना है किसी लंबे सफर पर उसे

इन ईंट के बने जंगलों से दूर

शायद बनाना हो एक मकान

जिसमे बजती हो उसकी धुन

जहां न हार्डवेयर की चिंता हो

न ही किसी सॉफ्टवेयर की फिक्र

बायोमेट्रिक से न हो उसकी पहचान

थोड़ी बगावत भी हो

थोड़ा इश्क़ भी

शायद कोई पूछ लें एक बार

"की दिन कैसा था तुम्हारा"

जहाँ स्नेह कागज़ी न हो

जहाँ रिश्ते फ़र्ज़ी न हो

जहाँ इबादत भी हो

जहाँ आबरू भी हो

रातें भूखी न हो

आँखे नम न हो

रोज़ सरेआम पितृसत्ता की झाँकी न हो।

इन सभी सपनो को वो सहलाती है अपने हाथों से

फिर अपने माथे के पीछे इनको इकट्ठा करके

लगाती एक क्लिप।

शायद एक दिन वो क्लिप खुलेगा

और उसके बाल लहरायेंगे

ठीक उसी तरह

जैसे समुन्दर के किनारे दौड़ते घोड़ो के लहराते है।

वो लड़की शायद अभी ये सुन रही है

वो लड़की शायद अभी ये पढ़ रही है

एक लड़की है मेरे आफिस में,

मुस्कुराती ज़रा कम है।

शायद कहीं दूर से आई है,

या फिर शायद किसी बात का गम है।

नया शहर | Anurag

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

अच्छा ये बताओ,

ये जो नया मरमरी शहर बसा रहे हो,

तो फिर पुराने वाले का क्या करोगे?

क्या उसे छोड़ दोगे खंडहर बनने के लिए,

जहां के मकान धीरे धीरे पहले अपनी बिजली खो देंगे, फिर उनका रंग उतर जाएगा,

और किसी बरसात में प्लास्टर भी गिर जाएगा।

जो कुछ बरस बाद महज ईंटों के कंकाल रह जायेगें?

जिनमें एक कुतिया अपने छह बच्चों को जन्म देगी

और तुम्हारे नए शहर के घरों से रोटी, डबलरोटी चुराने की ट्रेनिंग देगी।

उन छह भाई बहनों में से, तुम्हारे नए शहर के कोने पर खड़े बिजली के खंभे की आड़ में पेशाब करने की कोशिश में, एक दो तो राम जी को प्यारे हो जाएंगे।

उनकी लाशों को फिर तुम्हारे सफाई कर्मचारी, हाथों में पीले दस्ताने पहन, वहीं पुराने शहर के खंडहरों में फेंक आएंगे,

और एक शाम बदबू से परेशान उनके बचे हुए भाई बहन, उन्हें सोया पड़ा देख, दांतों में खींच घसीट अपनी माँ के पास ले जाएंगे।

अभी तक उन्होंने हाथ थाम कर और नाक के नीचे दो उंगली लगा कर, किसी की सांस या नाड़ी जांचना नहीं सीखा होगा।

माँ भी अनपढ़ गवार, पशु बेचारी,

अपने घर लौटे, गुम हुए बच्चों के लिए खाना लाएगी,

एक दो दिन तक उनसे बात करने की, उन्हें प्यार करने की कोशिश करेगी।

पर फिर उन मरे हुए बच्चों की बदबू से परेशान, उनका निधन स्वीकार कर के, उन्हें दांतों से घसीट कहीं दूर, तुम्हारे शहर के उसी बिजली के खंभे के पास छोड़ आएगी।

क्या तुम उसे यह करने दोगे?

क्या तुम एक पूरे का पूरा शहर, उसकी सल्तनत,

एक विधवा कुतिया को दे दोगे?

क्या करोगे तुम अपने पुराने शहर का?

क्या टिकट लगा कर उसे अजायबघर कर दोगे?

जितना खर्च इस नए शहर को बसाने में जा रहा है,

उतना पर्यटन से निकल आये तो बुरा क्या है?

कह देना, फलां बादशाह फलां साल में फलां देस से आया था,

कोई कहानी बना देना, औरंगज़ेब के सौतेले परपोते के बारे में।

एक पत्थर पर सुनहरे रंग से लिख देना सारा इतिहास।

कुछ बरस बीत जाने देना।

जब टिकट बेच कर, नए शहर के सारे खर्च निबट जाएंगे,

पर्यटकों के आवागमन से तुम्हारा जी उकता चुका होगा और पुराने खंडहर हो चुके शहर की देखभाल महंगी लगने लगेगी,

तो एक अफवाह फैला देना,

कि वहां भूत प्रेत रहने लगे हैं।

कहना औरंगजेब के सौतेले परपोते साहब अपनी सल्तनत में लौट आये हैं और अब यहीं रहेंगे।

लोग मासूम होते हैं, मान लेंगे।

पर कुतिया कहां मानने वाली है,

वो तो वहीं रहेगी।

उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

हाँ, पर उसके जो दो मरे हुए बच्चों के प्रेत

अपने खत्म हो चुके जिस्म की बदबू लेकर

तुम्हारे नए शहर में घूम रहे होंगे,

उनका क्या करोगे?

चलो जाने दो। तुम अपना शहर बनाओ।

अपना नया, मरमरी शहर।

पुराने शहर से तुम्हें क्या लेना देना?

परछाइयाँ | Ishan Vyas

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

दीवारों पर तारीख़ों की तस्वीर सी परछाइयाँ

मीमार के अरमानों की रसीद सी परछाइयाँ

आफ़ताब ने भी बनायी है अपनी एक दुनिया

रोज़ ब रोज़ के इनक़लाबों में ठहराव सी परछाइयाँ

रहती हे ज़माना समेटे आस पास मेरे

खलवातों में मूसलसल खामोशी सी परछाइयाँ

ढूँढो जब तुम जब सितारों में क़िस्मत के इशारे

पास होगी हक़ीक़त की झांकी सी परछाइयाँ

कुछ अधूरी ख्वाहिशों का एक सैलाब ही था वो

जो नज़र आयी आज उसकी शक़ल सी परछाइयाँ

कितना हसीन है वो जो एक तसव्वुर है ‘दर्वेश’

गूमां लबरेज़ हक़ीक़त में उमीद सी परछाइयाँ

An Ode on Emptiness | Archana S Murthy

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

Your rich vibrant laughter ringing in my ears,

The symphony of your baritone tunes of soulful music,

The warmth of your hand and the smugness of its fit in mine,

The damp grass beneath our feet during our long monsoon walks,

The tepidity of your hug and the intensity of your gaze,

The Michelangelesque small patterns you draw on my palm,

As you listen to my sad stories, filling abundance and completeness.

These are the memories I live with each day,

Not one waking moment did I feel abandoned or desolate,

I hold you in each step of my life,

You were my instep as I walked,

My eyelids to protect against dust ruthlessly blown by the crowd,

My umbrella during the rain,

My warmth on a cold chilly night.

You have gone, Adam, to the far worlds away from me,

More distant than the seven seas,

To a place where my warmth and love cannot touch your now cold heart,

You have encircled yourself in a world of which I am not a part,

Your wind does not fill me-this flute needs your breath to create music,

It is dead now-I feel like lead,

Numbness and leadenness are now a part of me.

It has been a year Adam, your memories fill the holes of this flute,

You brought me from abundance to emptiness,

But this emptiness is now my completeness,

I am your white shadow, pure but invisible in your love.

সন্ধিক্ষন | Sukendu Parui

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

ভোর না হলেও ডেকেছে মোরগ

ভাঙেনি ঘুম

অথচ কা কা সকাল শোকে

কেটে গেল ঘোর

দেখলেম বিশ্বজুড়ে দারুন আগুন-

মহামারী,

একটাই খবর

সঙ্ক্রমন এবং মৃত্যু ।

শোকেসে রয়েছে নোয়া

বিজ্ঞাপনে তার তরীখাানি

মডেল হয়েছে যত মাঝি

প্লাকার্ডে নীলামের বাজনাা-

সংবাদ আধুনিক মহা অসুখের

মোবাাইলে ভাাইরাল–চায়নাা ভাাইরাস ;

জুতোর আদলে চলা, শরীরি পোশাাক

চশমার চোখ, রঙীন খোসার সাজ

দারুন ভিড়ের মায়া

প্র্রেম ও ঘৃণা

অস্হির হিসাবের প্রত্যেকটি বোধ

ফ্য্যাশনের রোগ-

সব ফেলে শুধুই ‘করনা’-দুরত্ব জানেনা ;

আমাাদের জঞ্জালে আমরা নাকাল

আবিস্কৃত বহু অস্ত্র-সম্ভোগ কলা

নিত্যকার ভিড়ের চটক

প্র্রাকিতীক ভারসাম্য বুঝি বেসাামাল

ঘুস লুঠ সেলাামী মাইনে

সব তো টাকাই –

এখন গৃহবন্দী ভাালোবাসা

এবং জীবন -বড় একা

বদলে গেছে সব সূর-স্বপ্ন সাধ

শুধু রক্ষা-শুধু বেঁচে থাকা

-

প্রভুর অসীম করুনায়

যদি করোনা’ থেকে বাঁচা যায়

সুস্হ থাকা যায়, প্রার্থনা তাই ;

হে – ‘নোয়াা’

আমাদের সঞ্চয়ে আছে সব ফুল-

সব পাখি সমস্ত জীবন

পবিএ স্পন্দনের বীজ-বেপরোয়া

- \

আমাদের আশ্র্রয় দাাও

নেমে এসো এ মাটিতে,

মা-মাটি-মানুষের মাঝে -

এ বার অন্যভাবে এ যুগ,

সভ্যতা বাঁচাও

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আমাদের যোগ্যতায়

সন্ধিক্ষন পার হতে দাও ।

During a fire escape, hold people's hands and run! | Divya Gupta

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

people are unmapped destinations to places enamored with anecdotes/ people are the wreckage of a collapsed building trying to build a home inside you - in the hope that you don’t refuse to offer a glass of water/ people are echoes of the discussion that interrupt your voice. the voice that evaporates, unnoticed/ people are like rocks. sometimes a healing piece of hope, other times the missing piece of a monument, and at times laying in the debris of uncertainty/ dreaming of spring, sweat, and thunderstorms all at once, people are the magnificent shades of yellow used in a Van Gogh painting/ with faceless desires in one hand and the grit of moving mountains in other, people prove every other day that rainbows were put in the sky as a personification of human dreams/ like a war zone, a field of daisies, a billowing ripple in the water, a thanksgiving prayer, the frayed end of a thread, the strength of a tungsten wire, the boiling point of water, the rebel of an unsatisfied soul, the lullabies sung for a hungry child, the antiquity of love and the contemporary of social networking – people are a museum with no theme/ there are days when people bleed and there are days when they are curing an unknown disease. on both days, people are specks of moonlight, waiting for the night sky to change its hue/ people are hues; of fragility, vulgarity, and refinement. every shade trying to fill a box labeled “cautious”/ i bet science has nothing to do with diagnostic innovations. somewhere far in the land of vague emotions, a man couldn’t let go of a person to death and revolted against the urge to make sense. people are contemporary innovations/ you may roam the world to soak the nostalgia of Delhi and the alluring architectures of Venice but listen, “people are all we’ve got. so grab the night by its nipples and go and flirt with someone” (fleabag reference)

The Ghost in the Mirror | Dhakshaayani Thirunavkarasu Vetrivel

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

It's been loveless years hoarded with sorrows and fears

The lifeless eyes sprinkled in happiness but brimmed with tears

Wish I could change it, my beginning to a beautiful sunset

But I was beaten by love, a free fall full of regret.

Subdued in despair, I was strong but the world made me suffer

My anxiety spread, even my silence began to stutter

As the mold of darkness danced on my essence

The words "Am I happy?" settled deep within my pretense.

Restless nights accentuated my resentful screams but muted

The drying scent of death, reaped and seated

Upon piles of unread books, my forgotten deeds

The desires and will to be ceased, from this hypocrisy can I be freed?

I've seen people wear their smiles like trophies

While their hearts were filled with carmine poppies

I tried to be fake for everyone's sake, with my existence at stake

But was never enough, even when I pushed myself to point break.

Loneliness stared at me on this denuded night, unable to sate

My voice trembled and my thoughts were not straight

The madness inside me reflected on the shreds of thousand we

The ghost in the mirror is what on the shattered glass I see.

Before you become flowers | R.S.Chaithanya Raghavan

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

Before you become flowers , you were a

rough storm, a dark night, a lonely shell.

You were a book with no end.

You were an ocean that never peace , tide

never fell, waves never slowed.

You were a boomerang that swung lonely.

Your heart shone bright, a midnight moon.

And when you were grassfield , you let everyone play around on you.

You were a scary fall, but a not so horror landing.

You were a neon sign someone

was looking for.

A reminder that you are more than what society portrays you as.

A smile across someone's face.

A glass of thick honey, cosy and sweet.

A shot of Rum & Whiskey, burning going down.

After the rain stops pounding down,

like heavy punches from above, you grew, big and beautiful, like a new life, a beautiful flower.

मौन संवाद | Kavita Bhatt

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

मौन के मौन में

देखा है एक संवाद गहरा

एक भाव पूरा।

देखा है अर्थों को

पूर्णविराम के साथ

उस मौन गहराई में

विश्राम करते।

मौन अनंत है, मौन निराकार है

एक चेतन मन का

एक दुर्लभ अविर्भाव है।

मौन अंतर्मन का द्वार है

आत्मा से सिंचित

आत्मा में रचा बसा

प्रकृति का अद्भुत

एक काव्य-शास्त्र है।

तरुण पल्लव सा एक

कोमल भाव है मौन

तो कभी

तूफानों सा गरज़ता

चोटिल एहसास है मौन ।

मन का दर्पण

एक ओजस प्राण है मौन ।

मौन को समझना

आसान कहाँ

मौन की “मौन-संवेदना”

अर्थों की ओट पर है सींचती ।

ओस की बूँद में एक मौन

पत्तों की सरसराहट में

उनकी ख़ुशी का मौन

झरने की झर झर करती

किलकारी में स्वतंत्र

होने का मौन।

माँ की कोख में

पलता एक नन्हा प्राण

कुदरत की शक्ति का मौन।

होती प्रकृति सिंचित जिस मेघ से

उसमें सृजन का मौन I

मौन एक साधना है

मौन एक एहसास है

धमनियों में दौड़ता

प्रवाहित रक्त है

एक एक स्वांस की डोर

जो है बंधी इस मानुस से

उस डोर का छोर है मौन।

मौन एक शक्ति है

मौन एक साधना है

एक परिपूर्ण चेतना है।

ईश्वर की भक्ति में प्रफुल्लित

उस प्रार्थना का

विश्वास है मौन ।

मौन के मौन में

देखा है एक संवाद गहरा

एक भाव पूरा,

एक ” व्योम-अतल प्राण पूरा।”

देखा है अर्थों को

पूर्णविराम के साथ

उस मौन गहराई में

विश्राम करते।

समाज सेवा | Purnima Bhatia

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

सुना था, देखा था, जिन्दगी ऐसी है पर सोचा ना था, कि अपनी भी ऐसी ही हैं। जब पी रही थी सुपं, तब जाना जिन्दगी के हैं कितने रूप जिस सोच, विचार कर इसको लिखा, उसी तरह कर दिया विदा

ना कर सके अलविदा करके भी विदा, सुना है जिन्दगी है 'जिन्दा दिली का नाम, पर कुछ ही लोग कर पाते है ऐसे काम। भगवान भी भरोसा करता उनपे जो करते राम-राम।

जब दिया ऐसी बातो पे ध्यान, बट गया मेरा ज्ञान

बन गई मेरी एक नई पहचान' जिसे मैं समझती हूँ सम्मान।

फिर माँ-बाप ने भी कहा पूरे कर दिए तूने हमारे अरमान।

तभी दोस्तो ने कहा मैने समझा, दिया है भगवान ने मुझे बहुत बड़ा बरदान, मतदान लोगों ने किया, पता 'चला बन गई मैं राजनैता, अब पूर्णिमा करणी समाज सेवा ।

పర్యావరణం | Vennela Reddy Kallem

ప్రకృతి ప్రసాదించే పంచభూతాలు

మనందరి రక్షణ కవచాలు

కాని స్వార్థంతో ప్రజలు

లేకుండా చేస్తిరి వనరులు

ప్రకృతి ఇస్తుంది మనకు రక్షణ

చేయాలి మనం వాటి సంరక్షణ

లేకుంటే సాగదు మన జీవన మనుగడ

అందుకు ఇప్పుడే చేయాలి రగడ

రోజురోజుకి పెరుగుతున్న కాలుష్యం

రాబోయే రోజుల్లో మనందరి అదృశ్యం

ఇకనైనా నేర్చుకుందాం ప్రకృతి పాఠం

లేకపోతే మిగిలేది మానవాళి ఆర్తనాదం

ప్రకృతి మనందరి బహుమతి

ఇది గుర్తించాలి మనుష్యజాతి

మానవులారా! ప్రకృతే మనకు సాటి

అదే లేకుంటే లేదు ఇక మానవకోటి.

Saba | Karan Sharma

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

Mausam garma vo tuluu-e-aaftab baad-e-saba, vo inayat ho tum.

Do-pehar me javidan justajoo ho tumhari, ye riwayat hai hamari.

Haazir hoti ho, jab jab dil chahe tumhara.

Behad-e-intezaar me masroof hun yun tumhare.

Zaahir hai, ki tumhe mualoom nahi meri iss talab ke baare.

Saba-e-afreen,

Tabdeel na ho, na ho tarz-e-khiram vo tumhare.

Yun aati ho dil-e-zaar kiye hai.

Dua hai jo iss dafa aao to yun mukhtasar na ana.

Be-adab, tum haazir hogi, jab jab dil chahega tumhara.

Bethe hum masruf honge tumhare intezaar me, uss justajoo me.

Voh saba ho, voh inayat ho tum.